कभी अपने साथ जी के देखा है? ओशो कहते हैं दिन मैं ऐक बार अपने से बात कर लिया करो, नहीं तो तुम दुनिया मैं सबसे बेहतरीन इंसान से बात करने का मौका चूक जाओगे... मैंने कई बार अकेले बैठ के देखा है... कारण कुछ नहीं था... बस ऐसे ही... कभी खुद से चाह के या कभी दुनिया की आपाधापी मैं थोडा पीछे रह गया... सोचा थोडा सोचूं क्या किया जो नहीं करना था... थोडा अपने से बातें कर लूँ... शायद कोई जवाब मिल जाये... जैसे फिल्मों मैं दिखाते हैं... शीशे के आगे हीरो अपने आप को धुतकारता है "you are such a stupid ______!!!" वैसे ही... पर नहीं मैं नहीं सोच पाता... जैसे ही सोचता हूँ तो वो ही बातें याद आती है, नहीं बातें नहीं गलतियाँ याद आती हैं और फिर आगे कुछ सोचा नहीं जाता... बस फिर बैठ जाता हूँ चुपचाप... ऐसा नहीं है की कुछ सोच नहीं पता, बस भाग जाता हूँ अपने आप से... हमेशा की तरह... छुप जाता हूँ अपने ही इंसानी खोल के अन्दर ऐक आई डोंट केयर का attitude ले के...
फ़र्ज़ करो तुम और तुम दो अलग अलग इंसान ऐक ही कमरे मैं बैठे हो... क्या बात करोगे?
दोनों ऐक दुसरे के बारे मैं सब कुछ जानते हो... क्या करोगे? नज़रें चुराओगे या मिलाओगे? शायद चुप ही रहोगे... मेरी तरह...